Saturday, March 3, 2012

धर्मनिरपेक्ष


  धर्मनिरपेक्ष शब्द संविधान के १९७६ में हुए ४२वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया. यह सभी धर्मों की समानता और धार्मिक सहिष्णुता सुनिश्चीत करता है| भारत का कोई आधिकारिक धर्म नहीं है| यह ना तो किसी धर्म को बढावा देता है, ना ही किसी से भेदभाव करता है| यह सभी धर्मों का सम्मान करता है व एक समान व्यवहार करता है| हर व्यक्ति को अपने पसन्द के किसी भी धर्म का उपासना, पालन और प्रचार का अधिकार है| सभी नागरिकों, चाहे उनकी धार्मिक मान्यता कुछ भी हो कानून की नजर में बराबर होते हैं| सरकारी या सरकारी अनुदान प्राप्त स्कूलों में कोई धार्मिक अनुदेश लागू नहीं होता|
           उच्चतम न्यायालय का फैसला भी यही कहता है. इस फैसले के अनुसार, धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य का कोई धर्म नहीं होगा, राज्य सभी धर्मों से दूरी बनाए रखेगा, राज्य किसी धर्म को बढ़ावा नहीं देगा और न ही राज्य की कोई धार्मिक पहचान होगी|”
        उपरोक्त संदर्भ भारतीय संविधान एवं उच्च न्यायालय का है जिसे की संसद संशोधित कर लागू किया है|  वे सभी लोग जो सरकार और तन्त्र में शामिल है इसे मानने के लिए बाध्य हैं| जब की प्रायोगिक रूप में जब ये देखा जाता है की सरकार में शामिल लोग जिन्हें धर्मनिरपेक्ष होना चाहिए था, वो कभी चादर ढोते, कभी नमाज अदा करते, तो कभी खुद टोपी पहन कर जनता को टोपी पहनाते कभी चर्च में झूठी प्रार्थना करते| तो कभी क्रिसमस मनाते दिख जाते हैं|  जबकि धर्मनिरपेक्षता का जो अर्थ संविधान और उच्चतम न्यायालय ने तय किया है वो इससे इतर है| और इन सब कारणों के पीछे सम्प्रदायिक सौहार्द कि भावना कि बात करते हैं| मैं पूछना चाहता हूँ कि सिर्फ उनके ऐसा करने से भारत कि जनता पर कोई असर पडता है, या अब तक पड़ा ? जबाब होगा नही| क्यूंकि जनता तो इन नेता नाम के व्यक्ति से हि घृणा करती है, जनता को चाहिए भारतीय धर्म संस्कृति का रक्षक, ऐसे ढोंगी और कायर नही जो सद्भावना के लिए चोला बदलते फिरते हैं, जनता ऐसे हि कई ढोंगी, भ्रष्ट और दुष्ट बाबाओं, मौलानाओ, और पादरियों से तंग है| इस तरह के आचरण से ना तो कभी मुसलमान खुश होंगे और ना हि ईसाई| ये कृत्य तो इस्लाम और ईसाई के धर्मग्रन्थ कुरान और बाइबिल के भी खिलाफ है| ये कृत्य कुछ हल्के ईसाइयो और इस्लामिक विद्वानों को अच्छा लगता होगा| कि ये नेता कभी कभी तो उनका चोला बदलते हैं और उनके साथ शामिल होते हैं|पर मेरे मित्र आपको मैं ये बतलाना चाहूँगा कि किसी भी धर्म में इस तरह कि हरकत तर्कसंगत नही है| अगर इन्हें सही में कोई धर्म पसंद होता तो ये वो धर्म अपना नही लेते? ये सिर्फ अपना रूप बदल कर आपका मत हासिल करना चाहते हैं| इन्हें डर होता है कि अगर धर्म परिवर्तन किया तो मूल धर्म का मत तो जाएगा हि, उस धर्म में नया होने के कारण कोई पूछेगा हि नही| उदाहरण हरियाणा के चंद्रमोहन उर्फ चाँद मोहम्मद को देख लीजिए एक समय सुर्ख़ियों में रहने और फिर धर्म परिवर्तन के बाद उनकी राजनीती गुम हो जाना किससे छिपा है|

          2001 कि जनगणना के अनुसार सभी धर्म के मानने वालों कि प्रतिशतता इस प्रकार है.. हिंदू  मुस्लिम ईसाई, सिक्ख, जैन, इत्यादि| इन के आंकड़े भी धीरे धीरे बदलते रहे हैं १९६१ से लेकर २००१ तक कि जनसंख्या में इनमें से कुछ कि प्रतिशतता बढती तो कुछ कि घटती रही है| और घटने वाली संख्या हिंदुओं कि है| आज जो कि सभी को पता होगा इजरायल, अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, नार्वे, चीन,और भी ना जाने कई यहाँ तक कि बांग्लादेश भी धर्मनिरपेक्ष देश हि है| इनके कारनामे जैसे इजरायल के फलिस्तीनी मुसलमानो पर हमले, अमेरिका, ब्रिटेन, जापान,आस्ट्रेलिया, और नार्वे कि संयुक्त सेना का आतंकवाद के बहाने इस्लामिक देशों पर हमले किसी से भी छिपे नही हैं और इन देशों के धन भी ईसाइयत के प्रचार में जुटे मशीनरियों को मिलते हैं| ये सभी धर्मनिरपेक्षता कि आड़ में लोगों का धर्म परिवर्तन का काम कर रहे हैं|| ये देश तो इस्लामिक उपनामों वाले लोगों पर बहुत हि कड़ी नजर रखते हैं, और उनकी तलाशी भी बहुत बेहूदा तरीके से करते हैं| जो कि अपमान के बराबर हि है, फिर भी इसके इस्लामिक देशों, से बहुत हि अच्छे हैं और जिनसे अच्छे नही हैं उन पर या तो हमले होते हैं, या सरकार बदल दी जाती है, अफगानिस्तान, ईराक, लीबिया, ट्यूनीशिया, इत्यादि इसके उदाहरण हैं| बांग्लादेश धर्मनिरपेक्ष होने के बावजूद भी अपने यहाँ कि हिंदू आबादी के साथ जो कर रहा है वो आये दिन पढ़ने को मिलते हि रहते हैं| चीन भी आतंकियों कि आड़ में मुसलमानों को नष्ट कर रहा है| जापान तो इतना तक घृणा करता है कि जापान कि सरकार मुसलमानों को अपने यहाँ कि नागरिकता भी नही देती| और तो और आज तक किसी भी सम्पन्न इस्लामिक राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष ने कभी जापान कि कोई यात्रा भी नही कि जब कि वो एशिया में हि स्थित है और सभी देशों से ज्यादा विकसित है| इन सभी उदाहरणों से ये साफ़ हो जाता है कि  ये सभी देश धर्मनिरपेक्षता का आदर्श छेड़ कर अपने धर्म संस्कृति को प्रसारित कर रहे हैं, प्रचारित कर रहे हैं|
धर्म  निरपेक्षता लोकतंत्र में द्वितीयक पहलु है, लोकतंत्र की प्राथमिकता राष्ट्र की अखंडता, एकता, समाजिकता और लोगों का सर्वांगीण विकास है| धर्मनिरपेक्षता का टैग पट्टे की तरह लगाकर घूमने से लोकतंत्र की प्राथमिकता गौण हो जाती है, और लोकतंत्र मौन| आज इन्ही कारणों से देश समाज और जनता पीछे है| विकास की जगह इस धर्मनिरपेक्षता ने ले ली है और लोग लगे हैं विकास, सद्भावना और समाजिकता की जगह पर धर्मनिरपेक्षता दिखाने में| उथले और असमाजिक दृष्टिकोण अपनाने वाले दिखावा बहुत करते हैं और वास्तविकता के साथ कम चलते हैं| ऐसे ही उथले और अमजिक लोगों का जमावडा हो चुका है| भारतीय राजनीती में इनके भाषणों का प्रचार चैनल करते हैं अधिकांश जनता तक उनकी आवाज प्न्हुन्चती भी नही और ये लोकप्रियता का टैग इन उथले और अस्माजिकों के गले में लटकाए घूमते हैं| समय है अब से ही सचेत हो जाना चाहिए और इस धर्मनिरपेक्षता को गौण और बाकी लोकतंत्र की प्राथमिकताओं को प्राथमिक बनाया जाए|

Monday, February 27, 2012

हॉकी

जय हिंद मित्रो
                      कल हॉकी के ओलंपिक क्वालीफाइंग के फ़ाइनल को जीतने के बाद हॉकी टीम की जितनी तारीफ की जाये वो कम होगी पर वाह रे भारतीय मीडिया , कई चेनलों पर ब्रेकिंग समाचार क्रिकेट टीम की हार का चलता रहा , अरे भूल जाना चाहिए क्रिकेट की हार को क्यों कि वो विदेशी खेल हमारी पहचान नहीं है , हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है
   जितना पैसा क्रिकेट पर बर्बाद किया जाता है यदि उसका आधा भी हॉकी पर खर्च किया जाता तो आज हम कहाँ होते , फिर भी प्रसंसा करनी होगी हॉकी कि टीम की ,कि आभाव ग्रस्त रह कर भी खिलाडी देश के लिए पूरी ईमानदारी से खेलते रहे , २००८ को छोड़ कर , हर बार टीम ओलंपिक मैं खेलती रही और जीतती भी रही है 
        मेरा कहना है कि जो जज्बा हम क्रिकेट के लिए दिखाते हैं उस से अधिक हमें हॉकी के लिए दिखाना होगा तभी प्रायोजक हॉकी कि और आकर्षित होंगे 
                                                                                                       जय हिंद